




इस कथक संध्या में प्रतिभावान, उद्दीयमान कलाकारों को अपनी प्रतिभा दर्शाने का सुनहरा अवसर प्रदान किया गया। जिसमें लगभग 250 संस्थान के विद्यार्थियों एवं 261 कथक नृत्य से जुड़े कुशल कलाकारों द्वारा प्रस्तुति प्रदान कर नृत्य शैली को विस्तार दिया गया।
लखनऊ के अतिरिक्त छोटे एवं दूरस्थ स्थानों मे भी कथक नृत्य सम्बन्धी आयोजन सम्पादित किये गये और जनजागरण को प्रदेश की संस्कृति एवं भारतीय संगीत से अवगत कराने का प्रयास किया गया। जिसमें लगभग 250 कलाकारों ने महत्वपूर्ण भागीदारी दी।
इस प्रयास से जनजागरण में न केवल भारतीय संस्कृति एवं संगीत का संरक्षण एवं सवंर्धन किया गया बल्कि उन्हे विश्वशान्ति, बन्धुत्व, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, जल जीवन का संरक्षण जैसे अति महत्वपूर्ण विषयों, समस्याओं एवं समस्याओं के निराकरण से अवगत कराया गया
कथक मानवता का सुन्दर सन्देश पहुंचाने वाली नृत्य विधा है। नृत्य के माध्यम से समाज में जागरुकता लाने की दृष्टि से कथक संस्थान ने एक मौलिक प्रयास किया, जिसके अन्तर्गत एक नई विचारधारा, अवधारणा एवं नई सोच के साथ राष्ट्रीय कथक समारोह-“विरासत” सम्पन्न कराया गया
राष्ट्रीय कथक संस्थान द्वारा विगत 30 माह में कथक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे छात्र-छात्राओं को मंच के प्रति आत्मविश्वास जागृत करने तथा उन्हें प्रस्तुतिकरण के प्रति जागरुक बनाने के उद्देश्य से ‘रूनझुन’ कार्यक्रम कराया गया। इन नवांकुरो को संस्थान के युवा शिक्षकों ने कार्यशाला के माध्यम से प्रशिक्षित किया और मंच पर उनकी प्रतिभा को सुन्दर प्रस्तुतियों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया।
राष्ट्रीय कथक संस्थान ने गुरूओं की इस अमूल्य विरासत के महत्व को और गुरूओं के योगदान को अविस्मरणीय बनाने की दृष्टि से पं0 बिन्दादीन महाराज स्मृति उत्सव “रसरंग” आयोजन वर्ष 2017-18 एवं 2018-19 में राष्ट्रीय कथक उत्सव के रूप मनाया गया।
“संगीत संगम” - कथक की पूरक विधाओं का शिक्षण प्राप्त कर रहे छात्र/छात्राओं को भी प्रोत्साहित करने एवं उन्हे मंच के प्रति आत्मविश्वास जागृत करने के उद्देश्य से वर्ष 2017-18 एवं 2018-19 में ‘संगीत संगम’ कार्यक्रम आयोजित किया गया।
अन्तर्राज्यीय कथक संवर्धन ‘परस्पर’ माध्यम से उत्तर भारत की शास्त्रीय नृत्य शैली कथक को व्यापकता, भव्यता, जागरूकता एवं जनसाधारण के मध्य लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से एवं राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार करने हेतु अन्य राज्यों से ‘परस्पर’ सामंजस्य स्थापित कर राजस्थान प्रदेश में कथक समारोह किया गया।
राष्ट्रीय कथक संस्थान की स्थापना संस्कृति विभाग के अन्र्तगत स्वायत्तशासी संस्थान के रुप में वर्ष 1988-89 में हुई थी। संस्थान का उद्देश्य उत्तर प्रदेश के मात्र शास्त्रीय नृत्य कथक के विविध घरानों की परम्पराओं का अभिलेखीकरण, युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहन, वरिष्ठ कलाकारों का संरक्षण, कथक नृत्य का संवर्द्धन एवं लुप्त हो गये व नवीन पक्षों पर शोध और कथक संग्रहालय की स्थापना है। कथक नृत्य के प्रोत्साहन, संरक्षण एवं संवर्धन में सक्रिय रूप से कार्य करते हुए संस्थान ने इस शास्त्रीय नृत्य एवं नृत्य से सम्बन्धित बाल, युवा एवं वरिष्ठ कलाकारों के हित मे अनेकानेक गतिविधियाँ संचालित की। विगत 30 माह में विशेषरूप से इस नृत्य शैली ने अपनी भव्यता एवं रोचकता के कारण जनजागरण मे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया और इस गरिमामयी नृत्य शैली एवं शास्त्रीय संगीत के प्रति लोगों में उत्सुकता जागृत हुई। राष्ट्रीय कथक संस्थान ने इस अल्प समय में कथक को पर्याप्त विस्तार देकर, उसकी परम्परा को संरक्षित रखते हुए उसे नवीन आयामों में ढालकर कुछ स्वर्णिम उपलब्धियाॅ अर्जित की।